Saturday, 25 February 2017

रामभक्त हनुमान जी

रामभक्त, बजरंगबली, पवन पुत्र, अंजनी पुत्र, ना जाने कितने नामों से पुकारा जाता है हनुमान जी को। हिन्दू धर्म में हनुमान जी को भगवान शिव का ही अवतार माना गया है। लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि भगवान शिव जी की तरह ही हनुमान जी के भी अनगिनत भक्त हैं। उन्हें मानने वालों की गणना करना असंभव है।

तीन युगों तक किया राज

ऐसी मान्यता है कि भगवान हनुमान त्रेतायुग से लेकर आने वाले तीन युगों तक जीवित रहे हैं। यानि कि आज के कलयुग में भी वे जीवित हैं, लेकिन कहां हैं यह कोई नहीं जानता।

महाभारत युग में हनुमान जी

त्रेतायुग में श्रीराम के साथ और द्वापर युग में महाभारत के दौरान भीम से मिलना, यह दर्शाता है कि हनुमान जी दो युगों तक हमारे बीच रहे हैं। लेकिन ये वे महारथी हैं जो कलयुग में भी अपना स्थान बनाए हुए हैं।

आते हैं हनुमान जी

ऐसी मान्यता है कि समस्त संसार में जब-जब हनुमान चालीसा, सुंदरकांड, रामचरित मानस, रामायण, आदि का पाठ किया जाता है तो हनुमान जी वहां जरूर मौजूद होते हैं।

देते हैं दर्शन

वे किसी ना किसी वेश में भक्तों के बीच उपस्थित होते हैं। लेकिन उन्हें पहचानने के लिए गहरी भक्ति भावना की आवश्यकता होती है। और जो उन्हें पहचान ले उसका जीवन हनुमान जी सफल बना देते हैं।

ज्योतिष में हनुमान जी का महत्व

लेकिन यदि हनुमान जी के दर्शन ना भी हों तो अन्य तरीके हैं जिनसे उनका आशीर्वाद पाया जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र में हनुमान जी को समर्पित ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ करने का महत्व समझाया गया है।

हनुमान चालीसा का पाठ

कहा जाता है कि इस पाठ को रोजाना जो व्यक्ति करता है उस पर कभी शनिदेव की क्रूर दृष्टि नहीं होती। उसका साढ़ेसाती का समय भी आसानी से निकल जाता है। साथ ही पाठ में उल्लिखित चौपाइयां भक्त को मनचाही शक्तियां एवं बल प्रदान करती हैं।

हनुमान बाहुक का पाठ

आपने हनुमान चालीसा के बारे में तो बहुत सुना होगा। उसके महत्व एवं चमत्कारी असर के बारे में भी जाना होगा, समझा होगा और शायद महसूस भी किया होगा। लेकिन क्या कभी आपने हनुमान बाहुक के बारे में सुना है?

दूर होते हैं कष्ट

हनुमान जी को संकटमोचक कहा गया है और उनके हनुमान बाहुक पाठ का कुछ ऐसा ही असर है। इस पाठ को पढ़ने वाले के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

शारीरिक कष्टों को दूर करे

हनुमान बाहुक पाठ व्यक्ति के शारीरिक कष्टों को दूर करता है। इस पाठ की संरचना कैसे हुई और किसने पहली बार इसका जाप किया, इसके पीछे एक रोचक कहानी है।

संत तुलसीदास ने की थी रचना

कहा जाता है कि संत तुलसीदास जी एक बार काफी बीमार पड़ गए। वे श्रीराम एवं हनुमान जी के परम भक्त माने जाते हैं। उन्होंने ही हनुमान चालीसा लिखी थी। उस समय तुलसीदास काफी कष्ट में थे।

जब वे बीमार थे

उन्हें एक गहरी बीमारी ने जकड़ लिया था, शरीर में काफी पीड़ा भी हो रही थी। पीड़ा भरी आवाज में उन्होंने हनुमान नाम का जाप आरंभ कर दिया। अपने भक्त की पीड़ा देखते हुए हनुमान जी प्रकट हुए।

हनुमान बाहुक पाठ पढ़ा

तुलसीदास ने उनसे एक ऐसे श्लोक की प्रार्थना की जो उनके सभी शारीरिक कष्टों को हर ले। तब हनुमान जी ने उन्हें जो शब्द सुनाए, उनका तुलसीदास ने जाप किया और देखते ही देखते वे ठीक हो गए।

तुलसीदास हो गए ठीक

यह हनुमान बाहुक का पाठ ही था जिस कारण से तुलसीदास के सभी शारीरिक कष्ट खत्म हो गए। हनुमान बाहुक के 44 चरणों का पाठ करने वाले इंसान के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

हनुमा बाहुक से मिलने वाले लाभ

ऐसा माना जाता है कि जिन्हें गठिया, वात, सिरदर्द, कंठ रोग, जोड़ों का दर्द आदि तरह के दर्द से परेशान हैं, तो जल का एक पात्र सामने रखकर हनुमान बाहुक का 26 या 21 दिनों तक मुहूर्त देखकर पाठ करें। प्रतिदिन उस जल को पीकर दूसरे दिन दूसरा जल रखें।

पीड़ा हर लेते हैं हनुमान जी

हनुमानजी की कृपा से शरीर की समस्त पीड़ाओं से आपको मुक्ति मिल जाएगी। इसके साथ ही यदि जीवन में रुके हुए काम हैं या कोई इच्छा पूर्ण नहीं हो रही, तब भी हनुमान बाहुक का पाठ करना लाभदायक सिद्ध होता है।

हर बाधा से मिलती है मुक्ति

हनुमान बाहुक का पाठ भक्त को भूत-प्रेत जैसी बाधाओं से भी दूर रखता है। ऐसी किसी भी प्रकार की बुरी शक्ति हनुमान बाहुक का पाठ करने वाले भक्त के आसपास भी नहीं आती है।

नकारात्मक शक्ति रहती है दूर

हनुमान बाहुक के पाठ से भक्त के आसपास एक रक्षा कवच बन जाता है, जिसके कारण किसी भी प्रकार की नकारात्मक शक्ति उसे छू भी नहीं सकती।

इस तरह से करें यह पाठ

हनुमान बाहुक का पाठ करने के लिए कोई विशेष नियम नहीं है। आप कभी भी, कहीं भी यह पाठ कर सकते हैं। लेकिन यदि आप तुरंत फल पाना चाहते हैं तो इसके लिए एक शास्त्रीय तरीका मौजूद है।

रखें श्रीराम और हनुमान की तस्वीर

हनुमान बाहुक का पाठ करने के लिए आप हनुमान जी की एक तस्वीर लें। साथ ही श्रीराम की तस्वीर को भी उसके साथ रखकर, सामने बैठ जाएं। इसके बाद दोनों तस्वीरों के सामने घी का दिया जलाएं और साथ में तांबे के गिलास में पानी भरकर भी रख दें।

मन से करें पाठ

इसके बाद ही पूरे मन से हनुमान बाहुक का पाठ करें। जैसे ही पाठ समाप्त हो तो तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीड़ित व्यक्ति को पिला दें या जिस किसी के हित के लिए भी यह पाठ किया गया हो उसे पिला दें।

पीड़ित को पिला दें पानी

पानी के साथ आप पूजा के दौरान हनुमान जी को तुलसी के पत्ते भी अर्पित कर सकते हैं। यह पवित्र तुलसी के पत्ते पूजा को अधिक सकारात्मक बनाते हैं। पाठ खत्म होने पर पीड़ित व्यक्ति को तुलसी के ये पत्ते भी खिला दें।

रोजाना कर सकते हैं ये पाठ

इस तरह से व्यक्ति सभी प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से दूर रहता है। केवल कष्ट होने पर ही नहीं, बल्कि रोजाना भी हनुमान बाहुक का पाठ करना फलदायी होता है।


Thursday, 16 February 2017

🌼🌼🌼Positive direction 🌼🌼🌼


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Once upon a time, there was a little boy in the school who was very notorious. He always used to irritate the teachers with his silly pranks. The teachers used to punish him all the time. Inspite of that, there was no change in his mischievous activities at all. The teachers were tired of his roguish behaviour. When the principal got to know about the entire episode, he gave his parents the warning that if their son continues to do so, they will expel him from the school.

After few days, he was still the same. The principal called his mom to the school & said, “Your son is a disaster, he is the dumbest & most ill-disciplined kid he has ever come across.” The mother felt so embarrassed that she decides to leave the school. As soon as they stepped out, they heard the sound of fire alarm. Everybody got panicked and started running here & there. It had become a complete mess. While they were escaping, the little boy noticed one of her teachers stuck in a laboratory. The door was jammed & she couldn’t come out. Everybody was in a hurry to run, nobody stopped to rescue her. The little boy immediately went towards the jammed door. With his witty tricks, he was quickly able to unlock the door by placing his identity-card to twist the lock & create vacuum which made the door open up. Everybody including his teachers, his mother, & the students was stunned. They all then quickly came out of the building.

Few hours later, everything was resolved by the firemen. The teachers & the principal appreciated the boy for his brave & courageous efforts. The principal decided to let him stay in the school & ensured that his playful activities don’t become a cause of trouble for the teachers, rather used productively. The teachers started giving him responsibilities rather than punishments now, and he was capable enough to manage things. His class teacher even made him the class monitor, & was amused how well he could handle the entire class with his skills.

Nobody is perfect, nobody is weak. All we need to figure out is the skills & capabilities of a person so that the actions could be transformed in a positive direction!



🌼🌼🌼हनुमान चालीसा की शक्ति 🌼🌼🌼



परंतु हनुमान चालीसा में तो कोई मंत्र है ही नहीं, फिर मंत्रों के बिना भी वह चमत्कारी प्रभाव देने में सक्षम कैसे है? दरअसल हनुमान चालीसा में मंत्र ना होकर हनुमानजी की पराक्रम की विशेषताएं बताई गईं हैं। कहते हैं इन्हीं का जाप करने से व्यक्ति सुख प्राप्त करता है।

पांच चौपाइयां

चलिए आपको बताते हैं हनुमान चालीसा की उन 5 चौपाइयों के बारे में, जिनका यदि नियमित सच्चे मन से वाचन किया जाए तो यह परम फलदायी सिद्ध होती हैं।

इस दिन करें जप

हनुमान चालीसा का वाचन मंगलवार या शनिवार को करना परम शुभ होता है। ध्यान रखें हनुमान चालीसा की इन चौपाइयों को पढ़ते समय उच्चारण में कोई गलती ना हो।

पहली चौपाइ

भूत-पिशाच निकट नहीं आवे। महावीर जब नाम सुनावे।।

लाभ

इस चौपाइ का निरंतर जाप उस व्यक्ति को करना चाहिए जिसे किसी का भय सताता हो। इस चौपाइ का नित्य रोज प्रातः और सायंकाल में 108 बार जाप किया जाए तो सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है।

दूसरी चौपाइ

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

लाभ

यदि कोई व्यक्ति बीमारियों से घिरा रहता है, अनेक इलाज कराने के बाद भी वह सुख नही पा रहा, तो उसे इस चौपाइ का जाप करना चाहिए। इस चौपाइ का जाप निरंतर सुबह-शाम 108 बार करना चाहिए। इसके अलावा मंगलवार को हनुमान जी की मूर्ति के सामने बैठकर पूरी हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए, इससे जल्द ही व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है।

तीसरी चौपाइ

अष्ट-सिद्धि नवनिधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।

लाभ

यह चौपाइ व्यक्ति को समस्याओं से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है। यदि किसी को भी जीवन में शक्तियों की प्राप्ति करनी हो, ताकि वह कठिन समय में खुद को कमजोर ना पाए तो नित्य रोज, ब्रह्म मुहूर्त में आधा घंटा इन पंक्तियों का जप करे, लाभ प्राप्त हो जाएगा।

चौथी चौपाइ

विद्यावान गुनी अति चातुर। रामकाज करिबे को आतुर।।

लाभ

यदि किसी व्यक्ति को विद्या और धन चाहिए तो इन पंक्तियों के जप से हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है। प्रतिदिन 108 बार ध्यानपूर्वक जप करने से व्यक्ति के धन सम्बंधित दुःख दूर हो जाते हैं।

पांचवीं चौपाइ

भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्रजी के काज संवारे।।

लाभ

जीवन में ऐसा कई बार होता है कि तमाम कोशिशों के बावजूद कार्य में विघ्न प्रकट होते हैं। यदि आपके साथ भी कुछ ऐसा हो रहा है तो उपरोक्त दी गई चौपाइ का कम से कम 108 बार जप करें, लाभ होगा।

हनुमान चालीसा का महत्व

किंतु हनुमान चालीसा का महत्व केवल इन पांच चौपाइयों तक सीमित नहीं है। पूर्ण हनुमान चालीसा का भी अपना एक महत्व एवं इस पाठ को पढ़ने का लाभ है, जिससे आम लोग अनजान हैं।

भक्तों का अनुभव

यह बात केवल कहने योग्य नहीं है, अपित्य भक्तों का अनुभव है कि हनुमान चालीसा पढ़ने से परेशानियों से लड़ने की शक्ति प्राप्त होती है।
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|| श्री राम जय राम जय जय राम ||


|| जय हनुमान || 

🌼🌼🌼स्टीफन हॉकिंग्स (stephen hawking) ज्याने मृत्यू ला नमवले

स्टीफन हॉकिंग्स🌼🌼🌼


1962 मध्ये हिवाळी सुट्टी साठी 20 वर्षांचा स्टीफन घरी आला होता. तो आनंदात होता कारण त्याच 21 वे बर्थडे जवळ येत होते. त्याचं हे आनंद कदाचित नियतीला मान्य नसावे. तो त्याचा बर्थडे च्या काही दिवसा अगोदर आजारी पडला. सुरुवातीला त्याला आणि त्याचा घरच्या ना तो लवकर बारा होईल असे वाटले. पण त्याचा प्रकृतीत कसलाच बदल होत नव्हता. स्टीफन चा त्रास वाढत चालला होता, उपचारासाठी अनेक डॉक्टरांकडे दाखवून झाले पण रोगाविषयी काहीच माहिती मिळेना. त्यातच रोगाचा जोर वाढला आणि ८ जानेवारी १९६३ रोजी, २१ व्या वाढदिवसा दिवशीच स्टीफन यांना एक असाध्य रोग झाल्याचे स्पष्ट झाले.
स्टीफन यांना झालेल्या असाध्य रोगाला इंग्लंडमध्ये मोटर न्यूरॉन डिसीज (MND) तर अमेरिकेत अमायो ट्रॉपिक लॅटरल स्क्लोरोसिस (A. L. S.) असे म्हणतात. या रोगात हळूहळू शरीरातील स्नायूंवरचे नियंत्रण संपून जाते. रोग्याला अगोदर च्या काळात अशक्तपणा जाणवतो मग अडख़ळत बोलणे, अन्न गिळतांना त्रास होणे, हळूहळू चालणे-फिरणे आणि बोलणे बंद होत जाते.
स्टीफन हॉकिंग याना त्यांचा डोक्टर्सनी जेमतेम दोन वर्षे जगतील असे सांगितलं. स्टीफन उध्वस्त झाला, तो खूपच निराश झाला. अक्षरशा त्याचा डोकावर थोडा परिणाम झाला. तो काही दिवस घरातच रडत पडला होता.  नंतर त्याने ही तेच केलं जे आपण त्या वेळी केलं असते. त्याने नक्की केले की राहिलेले 2 वर्ष मनसोक्त जगायचं.

स्टीफन काही काळ मनसोक्त जगला देखील, पण हळू हळू त्याचे एक एक अवयव निकामी होत होते. त्याला आता इस्पितळात भरती करावे लागले. आता तो चांगलाच निराश झाला. पण एके दिवशी स्टीफन ने असे काही बघितले की त्याचं आयुष्यच त्याने पालटणार होते. त्याने त्याच इस्पितळातील एका रोग्याला असाध्य रोगाशी झगडतांना पाहिले. त्या रोग्याला पाहून स्टीफन ला देखील आशेचे किरण दिसू लागले. त्यानं देखील झगडायचे ठरवले. आणि काय आश्चर्य 2 वर्षात मारणारा माणूस आज ही जिवंत आहे.
अवयव निकामी झाल्याने स्टीफन यांना चालण्या-फिरण्यासाठी व्हील चेअरचा आधार घ्यावा लागला. मग या व्हील चेअरलाच एक संगणक जोडण्यात आला. फक्त एक बोट वापरून स्टीफन या संगणकावर हवे ते काम करू शकत. १९८५ साली हॉकिंग यांना न्यूमोनिया रोग झाला. केवळ श्वास नलिकेला छिद्र करूनच शस्त्रक्रिया होऊ शकणार असल्याने तशी शस्त्रक्रिया हॉकिंग यांच्यावर करण्यात आली पण त्यामुळे हॉकिंग यांचा आवाज कायमचा गेला. यावर संगणतज्ज्ञ डेव्हिड मेसन यांनी स्टीफन हॉकिंग यांच्या संगणकासाठी एक नवी आज्ञावली लिहून ती त्या संगणकात कार्यरत करून दिली. यामुळे संगणकाच्या आवाजाच्या माध्यमातून बोलणे हॉकिंग यांना शक्य झाले.

संशोधन

अश्या या माणसाने कृष्णविवर (black hole) या विषया वर आपली थेरी मांडली. या साठी त्याने आईन्स्टाईन यांचे खूपच अवघड अश्या सापेक्षता वादाचा सिद्धांताचा आभास केला. शरीराची हालचाल करू शकण्यास असमर्थ असलेल्या होकिंग्स यांनी अवघड गणिते मनातल्या मनातच सोडवली. शेवटी त्यांनी कृष्णविवरे देखील किरणोत्सर्ग करीत असावीत, असा निष्कर्ष त्यांनी काढला. याला आधी जोरदार विरोध झाला पण नंतर स्टीफन हॉकिंग यांचे मत पटल्यावर त्या नव्या निष्कर्षाप्रमाणे होणार्‍या किरणोत्सर्जनाला हॉकिंग उत्सर्जन असे नाव देण्यात आले. त्याच वर्षी स्टीफन हॉकिंग यांचा कृष्णविवर या विषयावरील प्रबंध इंग्लंडच्या नेचर या नियतकालिकेत प्रसिद्ध झाला आणि त्यांची रॉयल सोसायटीचा फेलो म्हणून निवड झाली
स्टिफन हॉकिंग्स हे त्यांच्या पुस्तकांमुळे आणि जाहीर कार्यक्रमांमुळे खूप लोकप्रिय आहेत. त्यांचं अ ब्रिफ हिस्टरी ऑफ टाईम  हे पुस्तक जगातील बेस्ट सेलर बुक्स च्या यादीत येते.
स्टीफन हॉकिंग्स म्हणतात
 मी चालू फिरू शकत शकत नाही, मला कंप्युटर च्या माध्यमातून बोलावं लागतं, पण मी माझा मेंदूने (विचारांनी) स्वतंत्र आहे.
खरंच आहे मित्रानो आपल्या कडे सर्व अवयव असून आपण डोक्याने. स्वतंत्र नाही, आणि स्टिफन सारखे लोक डोक्याने स्वतंत्र असतात.
एवढं सगळे वाचून मला तर वाटते, आपल्या जीवनातल्या कसल्या पण अडचणी बाबतीत आपल्याला तक्रार करायचा अधिकारच नाहीये. कारण स्टीफन हॉकिंग्स सारख्या लोकांच्या तुलनेत आपले दुःख आणि अडचणी याना कसलेच महत्व राहत नाही. 

Wednesday, 8 February 2017

🌼🌼🌼आपण आज जे काही करतो त्याचा पुढील पिढीवर परिणाम कसा होतो 🌼🌼🌼


या दोन कथा आहेत, दोन्ही कथा वाचल्या तर आपल्या लक्षात येईल की आपण आज जे काही करतो त्याचा पुढील पिढीवर परिणाम कसा होतो !!!
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पहिली कथा
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आपल्याला अल कॅपिनो माहीत असेलच, एके काळचा शिकागोचा सर्वात मोठा डॉन. त्याने अक्षरशः शिकागो वर राज्य केले आहे. दरोडे असो कि खून किंवा जुगार किंवा वेश्यागृहे, तुम्ही ज्या कुठल्या गुन्ह्याची कल्पना करू शकाल ते सगळे गुन्हे अल कॅपिनोनी केले होते. "इझी ऐडी" असे टोपण नाव असणाऱ्या आणि कायद्याला वाट्टेल तसं वाकवू शकणाऱ्या वकिलाच्या मदतीने कायद्याच्या कचाट्यातून हा माणूस मात्र नेहमीच सुटत आला. या बदल्यात इझी ऐडीला अल कॅपिनोनी जबर पैसा, मोठे घर वगरे सगळ दिलं. इझी ऐडीच घर एखाद्या नगराएवढे मोठे होते. संपूर्ण सुरक्षा होती. नोकरचाकर देखील होते दिमतीला. या ऐडीचा जीव मात्र एकुलत्या एका पोरात होता. गुन्हेगारी विश्वाचा एवढा मोठा वकील पण त्याने आपल्या पोराला मात्र या सगळ्यापासून दूर ठेवले. सत्य असत्याची जाण करुन दिली. ऐडीला नेहमी वाटायचं की आपला मुलगा मोठा झाला की त्याला समाजात आदरयुक्त स्थान असावे. इतकी प्रचंड संपत्ती असून ऐडी मात्र आपल्या मुलाला न चांगले नाव देवू शकत होता न चांगली उदाहरणे. एका दिवशी ऐडीला ही घुसमट पेलवेना आणि त्याने अल कॅपिनोची साथ सोडण्याचा निर्णय घेतला. त्याला याची किंमत माहीत होती. अक्ख्या शिकागोवर राज्य करणार्या डॉनच्या विरुद्ध तो उभा होता. पोलिसांना आणि कर अधिकार्यांना त्याने अल कॅपिनो विरुद्ध सगळी माहिती आणि पुरावे दिले. परिणाम भीषण झाला. एका दिवशी भर रस्त्यात त्याची हत्या झाली. पण त्याने त्याच्या मुलासाठी मात्र एक उदाहरण निर्माण केले होते. सत्यासाठी जीवही जाऊ शकतो. राह कठीन है मगर अंतिम जीत सत्य कीही होती है !!! पोराला हे शिकवण्यासाठी त्याने सर्वोच्च बलिदान दिले होते !! पोलिसाना ऐडीच्या खिश्यात रोझरी आणि एक कविता सापडली The poem read: The clock of life is wound but once, and no man has power to tell just when the hands will stop At, later or early hour Now is the only time you own. Live, love, toil with a will Place no faith in time For the clock may soon be still
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दुसरी कथा
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दुसऱ्या महायुद्धाने जगाला अनेक हिरो दिले. असाच एक साहसी योद्धा होता Butch O'Hare. फायटर पायलट असलेला बुच विमानवाहक युद्धनौका Lexington वर होता या महायुद्धात. साऊथ पैसीफिक या महासागरात ही युद्धनौका तैनात होती. एका दिवशी अख्ख्या स्क्वाड्रनला एका मिशन वर पाठवण्यात आले, आकाशात उडाल्यावर बुचच्या लक्षात आले कि त्याच्या विमानात पुरेसे इंधन नाही आहे. बेसकॅम्पनी त्याला परतण्याचा आदेश दिला. खट्टू मनानी बुचनी फॉरमेशन सोडले आणि परत यायला निघाला. परत निघालेल्या बुचला रक्त गोठवणारे दृश्य दिसले. मोठं जपानी स्क्वाड्रन बुचच्या युद्धनौकेवर चाल करून येत होते. अमेरिकन स्क्वाड्रन सोर्टीवर निघाले होते आणि त्यांनी युद्धनौका अक्षरशः हतबल होणार होती. बचाव करायला नौकेवर एकही विमान नव्हते आणि बुचच्या विमानात पुरेसे इंधन पण नसल्यामुळे तो अमेरिकन स्वाड्रनला परत आणू शकणार नव्हता. जपानी स्क्वाड्रनशी लढणे हा एकाच पर्याय बुचला दिसला आणि तो बेभानपणे जपानी फॉरमेशन मध्ये घुसला. असेल नसेल तो सगळा दारुगोळा त्याने वापरून काही जपानी विमानांना घायाळ केले. दारुगोळा संपल्यावर विमानाचे पंख त्याने शस्त्र म्हणून वापरायला सुरवात केली. जपानी स्वाड्रनची पाच विमाने त्याने पाडली होती आणि उरलेल्या जपानी स्क्वाड्रननी माघार घेतली. आपल्या अतिशय नुकसान झालेल्या विमानाला बुचने कसे बसे युद्धनौकेवर उतरवले. विमानात असलेल्या कॅमेराने बुचचा भीम पराक्रम रेकॉर्ड केला होता. बुचच्या या पराक्रमाची सगळ्यांनी दाद दिली. आसमंतात ऐकू जातील इतक्या जोऱ्यात टाळ्या वाजवण्यात आल्या. २० फेब्रुवारी १९४२ ला केलेल्या या पराक्रमासाठी बुच नौसेनेचा FIRST ACE OF WWII झाला आणि शौर्यपदकांनी त्याचा सन्मान करण्यात आला. मात्र या अवघा २९ वर्षाचा महान योद्धा पुढील वर्षी एका हवाई कारवाईत मारल्या गेला. त्याच मूळ शहर त्याला विसरू शकणार नव्हते. त्याच्या शहराने त्या शहरातील विमानतळाला त्याचे नाव दिले. आपण कधी शिकागोला गेलात तर O'Hare आंतरराष्ट्रीय विमानतळावर त्यांचा पुतळा बघा. टर्मिनल १ आणि २ च्या मध्ये हा या वीराचा पुतळा !!!! ==================================
आता तुम्ही म्हणाल कि या दोन कथांचा एकमेकांशी काय संबंध... Butch O'Hare हा ईझी ऐडीचा मुलगा होता !!