Wednesday, 4 July 2018

*AMOR FATI - नशिबाचा स्वीकार* 

हा शब्द लॅटिन भाषेतला आहे. याचा उच्चार कसा करतात मला माहित नाही. मी आमोर फाटी असा करतोय.  याचा अर्थ आहे "नशिबाचा स्वीकार". 

आपल्या आयुष्यात घडून गेलेली प्रत्येक गोष्ट मग ती वाईट असली, नुकसान करणारी असली तरीही ती तशी घडणे आवश्यक होते... अशा दृष्टिकोनातून ती गोष्ट स्विकारणे. ती गोष्ट आवडली नाही तरीही ती स्विकारणे... अगदी झेन तत्वज्ञानात सांगितलेल्या शांततेने, प्रसन्नतेने स्विकारणे. 

थाॅमस एडिसन जेवत होता. तेवढ्यात एक माणूस धावत आला.  त्याने वाईट बातमी आणली होती. एडिसनच्या प्रयोगशाळेला आग लागली होती. 

एडिसनने त्याला कसा प्रतिसाद दिला असेल असे वाटते?

"अरे देवा, काय हे... माझं नशिबच फुटकं... माझी सगळी मेहनत वाया गेली..." असा?
की त्याने खूप चिडून, बिथरून, आरडाओरड केली असेल?

पण यापैकी काहीच घडलं नाही. एडिसनने आपल्या मुलाला हाक मारली आणि म्हणाला,

 "अरे तुझ्या आईला आधी बोलाव, तिला अशी आग परत पहायला मिळणार नाही."

स्वाभाविकपणे मुलाला हेच वाटले की आपल्या बापाचे डोके फिरले, वेडा झाला बाबा. आजवर केलेली सर्व मेहनत आगीत भस्मसात होत होती आणि एडिसन शांत होता. तो शांतपणे म्हणाला,

"आग लागली हे बर झालं माझ्या सगळ्या चुका आणि इतर अनावश्यक गोष्टी जळून गेल्या."

'आमोर फाटी' म्हणजे काय, याचं हे उत्तम उदाहरण म्हणता येईल..

आपल्या आयुष्यात घडून गेलेल्या वाईट गोष्टी खऱ्या स्वरुपात आनंदाने स्विकारणे. 

६७ वर्षांचा एडिसन विमनस्क, हताश, उदास काहीच न होता नव्या उत्साहाने कामाला लागला. आगीत भस्मसात झालेली संपत्ती त्याने दसपटीने परत मिळवली.

मी या 'आमोर फाटी' कल्पनेच्या प्रेमातच पडलोय. का माहितेय? कारण आपलं नशिब स्विकारण्यातली ताकद मला समजलीय. यात अक्षरशः एवढी प्रचंड ताकद आहे की आपल्याला काहीच अशक्य वाटत नाही.  प्रत्येक गोष्ट होण्यामागे काही कारण असतं आणि ती गोष्ट सकारात्मकतेने स्विकारणे हे तुमच्या हातात असते.

▪ कदाचीत तुमचा जाॅब गेला असेल,

▪ कदाचीत तुमची आयुष्यभराची कमाई कोणी लुबाडली असेल,

▪ कदाचीत तुमच्या सर्वात प्रिय व्यक्तिला असाध्य रोग झाला असेल,

▪ कदाचीत तुम्हाला कोणी अत्यंत वाईट वागणुक दिली असेल,

▪ कदाचीत आयुष्याने तुमच्यासमोर असे आव्हान उभे केले असेल ज्यातून तुमची सुटका नाही,

तथापि तुम्ही हे सगळं हसत स्विकारता आणि त्यातूनच नव्या उर्जेने पुढे जाता, याला *'आमोर फाटी'* म्हणतात.

तुमच्या बाबतीत अशा गोष्टी घडल्याच तर तेव्हा तुम्हाला ओके किंवा चांगल वाटावं हा या लेखाचा उद्देश नाही. काहीही घडलं तरी तुम्हाला ते ग्रेट वाटावं आणि तुम्ही ते हसत स्विकारावं हा उद्देश आहे. 

जर ते घडलं तर ते घडणारच होतं आणि त्यातून तुम्ही स्वतःचा फायदा करून घ्यावा हा आहे.

एखादी आपत्ती आली असतांना शांत रहाणं हे अनैसर्गिक वाटतं. पण तेव्हा शांत रहा.

जेव्हा आपल्याला हरल्यासारखं वाटेल तेव्हा ते शांत रहाणंच जोमाने प्रवास करण्यासाठी नविन उर्जा देणारं ठरेल...

बास आता, झालं तेवढं खुप झालं अस वाटेल तेव्हा ते शांत रहाणं नवं इंधन देणार ठरेल...

सगळं विपरित घडत असतांना ते शांत रहाणं  थिंक बिग सांगणारं ठरेल...

हताशा आली असतांना ते शांत रहाणं तुमच्या चेहऱ्यावर हसू उमटवणारं ठरेल...

आमोर फाटी हा कोणत्याही प्रतिकूल परिस्थितीवर यशस्वी  रित्या मात करण्याचा पहिला टप्पा आहे. 

चला *आमोर फाटी* स्विकारुया...

💐💐💐💐
कई लोगों की दिनचर्या हनुमान चालीसा पढ़ने से शुरू होती है। पर क्या आप जानते हैं कि श्री *हनुमान चालीसा* में 40 चौपाइयां हैं, ये उस क्रम में लिखी गई हैं जो एक आम आदमी की जिंदगी का क्रम होता है।
माना जाता है तुलसीदास ने चालीसा की रचना बचपन में की थी।
हनुमान को गुरु बनाकर उन्होंने राम को पाने की शुरुआत की।
अगर आप सिर्फ हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं तो यह आपको भीतरी शक्ति तो दे रही है लेकिन अगर आप इसके अर्थ में छिपे जिंदगी  के सूत्र समझ लें तो आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिला सकते हैं।
हनुमान चालीसा सनातन परंपरा में लिखी गई पहली चालीसा है शेष सभी चालीसाएं इसके बाद ही लिखी गई।
हनुमान चालीसा की शुरुआत से अंत तक सफलता के कई सूत्र हैं। आइए जानते हैं हनुमान चालीसा से आप अपने जीवन में क्या-क्या बदलाव ला सकते हैं….

*शुरुआत गुरु से…*
हनुमान चालीसा की शुरुआत *गुरु* से हुई है…
श्रीगुरु चरन सरोज रज,
निज मनु मुकुरु सुधारि।
*अर्थ* - अपने गुरु के चरणों की धूल से अपने मन के दर्पण को साफ करता हूं।
गुरु का महत्व चालीसा की पहले दोहे की पहली लाइन में लिखा गया है। जीवन में गुरु नहीं है तो आपको कोई आगे नहीं बढ़ा सकता। गुरु ही आपको सही रास्ता दिखा सकते हैं।
इसलिए तुलसीदास ने लिखा है कि गुरु के चरणों की धूल से मन के दर्पण को साफ करता हूं। आज के दौर में गुरु हमारा मेंटोर भी हो सकता है, बॉस भी। माता-पिता को पहला गुरु ही कहा गया है।
समझने वाली बात ये है कि गुरु यानी अपने से बड़ों का सम्मान करना जरूरी है। अगर तरक्की की राह पर आगे बढ़ना है तो विनम्रता के साथ बड़ों का सम्मान करें।

*ड्रेसअप का रखें ख्याल…*
 चालीसा की चौपाई है
कंचन बरन बिराज सुबेसा,
कानन कुंडल कुंचित केसा।
*अर्थ* - आपके शरीर का रंग सोने की तरह चमकीला है, सुवेष यानी अच्छे वस्त्र पहने हैं, कानों में कुंडल हैं और बाल संवरे हुए हैं।
आज के दौर में आपकी तरक्की इस बात पर भी निर्भर करती है कि आप रहते और दिखते कैसे हैं। फर्स्ट इंप्रेशन अच्छा होना चाहिए।
अगर आप बहुत गुणवान भी हैं लेकिन अच्छे से नहीं रहते हैं तो ये बात आपके करियर को प्रभावित कर सकती है। इसलिए, रहन-सहन और ड्रेसअप हमेशा अच्छा रखें।
आगे पढ़ें - हनुमान चालीसा में छिपे मैनेजमेंट के सूत्र...

*सिर्फ डिग्री काम नहीं आती*
बिद्यावान गुनी अति चातुर, 
राम काज करिबे को आतुर।
*अर्थ* - आप विद्यावान हैं, गुणों की खान हैं, चतुर भी हैं। राम के काम करने के लिए सदैव आतुर रहते हैं।
आज के दौर में एक अच्छी डिग्री होना बहुत जरूरी है। लेकिन चालीसा कहती है सिर्फ डिग्री होने से आप सफल नहीं होंगे। विद्या हासिल करने के साथ आपको अपने गुणों को भी बढ़ाना पड़ेगा, बुद्धि में चतुराई भी लानी होगी। हनुमान में तीनों गुण हैं, वे सूर्य के शिष्य हैं, गुणी भी हैं और चतुर भी।

*अच्छा लिसनर बनें*
प्रभु चरित सुनिबे को रसिया, 
राम लखन सीता मन बसिया।
*अर्थ* -आप राम चरित यानी राम की कथा सुनने में रसिक है, राम, लक्ष्मण और सीता तीनों ही आपके मन में वास करते हैं।
जो आपकी प्रायोरिटी है, जो आपका काम है, उसे लेकर सिर्फ बोलने में नहीं, सुनने में भी आपको रस आना चाहिए।
अच्छा श्रोता होना बहुत जरूरी है। अगर आपके पास सुनने की कला नहीं है तो आप कभी अच्छे लीडर नहीं बन सकते।

*कहां, कैसे व्यवहार करना है ये ज्ञान जरूरी है*
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा।
*अर्थ* - आपने अशोक वाटिका में सीता को अपने छोटे रुप में दर्शन दिए। और लंका जलाते समय आपने बड़ा स्वरुप धारण किया।
कब, कहां, किस परिस्थिति में खुद का व्यवहार कैसा रखना है, ये कला हनुमानजी से सीखी जा सकती है।
सीता से जब अशोक वाटिका में मिले तो उनके सामने छोटे वानर के आकार में मिले, वहीं जब लंका जलाई तो पर्वताकार रुप धर लिया।
अक्सर लोग ये ही तय नहीं कर पाते हैं कि उन्हें कब किसके सामने कैसा दिखना है।

*अच्छे सलाहकार बनें*
तुम्हरो मंत्र बिभीसन माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना।
*अर्थ* - विभीषण ने आपकी सलाह मानी, वे लंका के राजा बने ये सारी दुनिया जानती है।
हनुमान सीता की खोज में लंका गए तो वहां विभीषण से मिले। विभीषण को राम भक्त के रुप में देख कर उन्हें राम से मिलने की सलाह दे दी।
विभीषण ने भी उस सलाह को माना और रावण के मरने के बाद वे राम द्वारा लंका के राजा बनाए गए। किसको, कहां, क्या सलाह देनी चाहिए, इसकी समझ बहुत आवश्यक है। सही समय पर सही इंसान को दी गई सलाह सिर्फ उसका ही फायदा नहीं करती, आपको भी कहीं ना कहीं फायदा पहुंचाती है।

*आत्मविश्वास की कमी ना हो*
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही, जलधि लांघि गए अचरज नाहीं।
*अर्थ* - राम नाम की अंगुठी अपने मुख में रखकर आपने समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई अचरज नहीं है।
अगर आपमें खुद पर और अपने परमात्मा पर पूरा भरोसा है तो आप कोई भी मुश्किल से मुश्किल टॉस्क को आसानी से पूरा कर सकते हैं।
आज के युवाओं में एक कमी ये भी है कि उनका भरोसा बहुत टूट जाता है। आत्मविश्वास की कमी भी बहुत है। प्रतिस्पर्धा के दौर में आत्मविश्वास की कमी होना खतरनाक है। अपनेआप पर पूरा भरोसा रखें।
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